झारखंड के राजनीतिक प्रयोगशाला में कौन रसायन क्या रिएक्शन करेगा, इंतजार कीजिए
- By rakesh --
- 28 Jun 2022 --
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ये मुलाकात एक बहाना तो नहीं……. मामला हेमंत सोरेन के अमित शाह के साथ मुलाकात का
रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जैसे ही दिल्ली में जाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की झारखंड की राजनीतिक में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। इस मुलाकात को कई एंगल से देखा जा रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की इस मुलाकात को शिष्टाचार मुलाकात के रूप में बताया जा रहा है, लेकिन लगता है कि एक बार फिर हेमंत सोरेन ने एक तीर से कई शिकार करने में कामाब होते जा रहा है। एक मुख्यमंत्री का केंद्रीय गृह मंत्री के साथ मुलाकात को तो एक फेडरल सिस्टम का अंग माना जाता रहा है, लेकिन जिस तरह के हालात में मुखअयमंत्री हेमंत सोरेन ने गृह मंत्री से मुलाकात की है, इसे झारखंड में हेमंत सोरेन का एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक भी माना जा रहा है।
दरअसल झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ साथ उनकी पार्टी के कई विधायक और सरकार में मंत्री कई मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसियों के जांच के दायरे में हैं। ऐसे में जांच एजेंसियों के कई विभाग केंद्रीय गृह मंत्री के जिम्मे है। ऐसे में हेमंत सोरेन के सामने बड़ी मुश्किलें हैं।
इसके अलावा माना जा रहा है कि झारखंड सरकार का केंद्र सरकार के पास जीएसटी और अन्य मद में हजारों करोड़ रुपए बकाए के रूप में है। अगर केंद्र सरकार के साथ बातचीत कर उक्त राशि को सरकार ले आती है तो राज्य का कायाकल्प हो सकता है। इन सारे मुद्दों पर हेमंत सोरेन ने पहले भी अपनी राय रखी है।
अब तक की जानकारी के अनुसार कई मामले ऐसे हैं जिसमें हेमंत सोरेन के सामने समस्याएं है। निर्वाचन आयोग में हेमंत सोरेन के अनगड़ा स्थित पत्थर माइंस लीज का मामला चल रहा है। इसके अलावा सरकार के कई करीबियों पर ईडी की जांच की आंच दिखाई पड़ रही है। साथ ही साथ राज्य के कई मंत्री और विधायक और अधिकारी केंद्रीय जांच एजेंसियों के दायरे में हैं। इन सभी को लेकर केंद्र सरकार लगातार सख्ती बरतने का काम कर रही है। ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के कई मायने हो सकते हैं।
इधर केंद्रीय गृह मंत्री के साथ इस मुलाकात के बाद झारखंड में सरकार की सहयोगी पार्टी कांग्रेस को भी झटका लग सकता है। माना जा रहा है कि पिछले दिनों कांग्रेस के कई विधायकों ने सरकार पर विभिन्न खाली पदों को लेकर जोरदार दबाव बनाया था। इसके बाद कुछ कांग्रेसी विधायकों ने पार्टी तोड़कर सरकार गिराने के खेल में भी शामिल थे। ऐसे में अगर विपरीत परिस्थिति आती है तो हेमंत सोरेन के पास बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर सरकार को बचाए रखने काभी रास्ता साफ हो सकता है। क्योंकि इसके पहले भी जेएमएम और बीजेपी की सरकार राज्य में बन चुकी है।
बहरहाल झारखंड को हमेशा राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में देखा जाता रहा है। ऐसे में अगर 22 साल के इस झारखंड में कोई नया प्रयोग होगा, तो किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए। इस बार भी राज्य के राजनीतिक हालात और वर्तमान की परिस्थितियां कंई तरह की संकेत देती नजर आ रही है। फिलहाल नए-नए प्रयोग के परिणाम का इंतजार करना चाहिए, क्योंकि कम प्रयोगशाला में कौन सा रसायन किससे साथ मिलकर कौन सा रिजल्ट देता है, इसपर अंतिम परिणाम पहले नहीं लिया जा सकता है।