रांची। विधानसभा से निकला जिन्न चिट्ठी का , झारखंड पर किया बड़ा असर !

राकेश कुमार

रांची। झारखंड गठन के 20 साल बाद भी जिन मुद्दों को लेकर राज्य का गठन किया गया था, उसपर बातचीत के लिए कोई तैयार नजर नहीं आ रहा है। ताजा उदाहरण तब सामने आया है, जब लोकतंत्र का मंदिर माना जानेवाले विधानसभा से जब मुसलिम समाज के लिए नमाज अता करने को लेकर एक चिट्ठी जारी की गई। जैसे ही चिट्ठी का जिन्न  सामने आया राज्य के तमाम राजनेताओं ने राज्य की जनता के गंभीर मुद्दों  पर पर्दा डालते हुए बयानबाजी की कुश्ती लड़ने को तैयार हो गए।

कोरोना काल के बीच बड़ी ही मुश्किल से झारखँड विधानसभा का मॉनसून सत्र आहूत किया गया है। ऐसे में इस बात की उम्मीद जताई जा रही थी कि बदलते परिवेश में सरकार और सरकार के सलाहकारों की तरफ से जनता के हित के लिए कुछ नई पॉलिसियों को लाया जाएगा। जनता की मूलभूत सुविधाओं और समस्याओं के निदान के लिए विपक्ष और सत्ता पक्ष सवाल जवाब कर लोगों को राहत देने की पहल करेंगे। लेकिन एक चिट्ठी का जिन्न ऐसा निकला कि सब कुछ धरा का धरा रह जाता लग रहा है।

मामला राज्य में कोरोना काल में बंद हुए उद्योग-व्यवसाय को जीवित कर राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का हो, या फिर कोरोना जैसा महामारी के बीच स्वास्थ्य व्यवस्था की जर्जर स्थिति को दुरुस्त करने का। इसपर ना तो राज्य सरकार गंभीर दिखाई पड़ रही है और ना ही विपक्ष।

ऐसे समय में जब राज्य में जनता रोजमर्रा के जीवन को आगे बढ़ाने के लिए जद्दोजेहद कर रही है, वैसे समय में इस नमाज जैसी चिट्ठी के जिन्न को बोतल से बाहर निकालना कितना जरुरी था। इसका जवाब तो सरकार और सरकार के सलाहकार ही दे पाएंगे। लेकिन इस चिठ्टी के जिन्न ने एक बार फिर झारखंड के गठन के उद्देश्यों से दूर ले जाने का कार्य करेगा।

सरकार और विधानसभा के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों ने आखिर इस तरह का फैसला किन-किन सलाहकारों के सुझाव पर लिया, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इस जिन्न से राज्य के सभी गंभीर मुद्दों पर पर्दा डाल दिया है। हालांकि इस बार का जिन्न राज्य के समाज को एक बार फिर दो भागों में बांटने का काम किया है। इस छोटी सी दो लाइन की चिट्ठी ने राज्य में एक ऐसा बीज बो दिया है, जिसपर अभी तो सिर्फ राजनीतिक चर्चा तेज है। लेकिन जिस तरीके से राजनीतिक चर्चा तेजी से बढ़ रही है, उसके स्वरूप सामाजिक रूप से कितना बड़ा असर करेगा, शायद जनप्रतिनिधियों को इसका सहज अंदाजा नहीं होगा।

आखिर इस तरह के फैसले लेने के पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों बैठकर क्यों नहीं चर्चा करते हैं। यह भी एक बड़ा सवाल है। आखिर राज्य को किस तरफ ले जाने की तैयारी है इसपर जनप्रतिनिधियों को गंभीरता से सोचना चाहिए। क्या इस पत्र के जारी करने के पहले तमाम सत्ताधारी दलऔर विपक्ष के साथ साथ सलाहकारों को इसपर मंथन नहीं किया जाना चाहिए था कि ऐसे फैसले सहमति से लिए जाएं।

सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि आखिर राज्य में सरकार को सलाह देनेवाले कौन-कौन हैं, जो राज्य की परंपरा, संस्कृति और राज्य गठन के उद्देश्यों पर कितनी जानकारी रखते हैं। ऐसा तो नहीं कि सलाहकार जानबूझकर अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में जनप्रतिनिधियों और जनता को इसी तरह के मुद्दों से उलझाकर रखना चाहते हैं।

इन सारे मुद्दों पर जनता को भी एक बार फिर से विचार करना होगा कि आखिर राज्य किस और जा रहा है और सचमुच राज्य की बागडोर संभालनेवाले इसके हकदार हैं या नहीं। क्योंकि अगर राज्य गठन के मूल भावना को नहीं समझेंगे तो राज्य को प्रगति पर नहीं ले जा सकते हैं।

राज्य गठन के उद्देश्यों पर कितना खरा उतरा है झारखंड।

  • राज्य के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक मजबूती के लिए राज्य का किया गया गठन।
  • आम लोगों की अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के लिए नौकरी और व्यवसाय में भागीदारी की उम्मीद।
  • स्थानीय नीति के साथ साथ नियोजन नीति पर आम जनता की भागीदारी की उम्मीद।
  • औद्योगिक विकास के लिए स्थानीय लोगों की समुचित भागीदारी की उम्मीद।
  • 5वीं अनुसूची वाले क्षेत्रों में लोगों के अधिकार दिलाने की सहमति की उम्मीद।
  • भाषा, संस्कृति और परंपरा के आधार पर विकास की योजना बनानेवाले कितने गंभीर।
  • खनिज संपदा वाले इलाके में जनता की सुरक्षा और भागीदारी पर कितना गंभीर।
  • कोयला, लोहा, पत्थर, बालू सहित बाकी खनिज संपदा का अवैध दोहन रोकने को लेकर कितने गंभीर।
  • अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा की लौ जाए इसके लिए कितना गंभीर।
  • स्वास्थ्य सेवा व मूलभूत सुविधाएं अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे इसके लिए कितना गंभीर।