औद्योगिक निवेश में उत्तर भारत पीछे क्यों? आंध्र प्रदेश ने सभी को छोड़ा पीछे

औद्योगिक निवेश में उत्तर भारत पीछे क्यों? आंध्र प्रदेश ने सभी राज्यों को छोड़ा पीछे

औद्योगिक निवेश के मामले में साढ़े पांच करोड़ की जनसंख्या वाले आंध्र प्रदेश ने सबसे बड़े उत्तर प्रदेश ही नहीं, सभी छोटे- बड़े राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। पिछले सात महीनों में चालीस हजार करोड़ का औद्योगिक निवेश अपने यहां कराने में सफल होने वाला आंध्र पहले नंबर पर है, यह उतनी हैरत की बात नहीं है। आश्चर्यजनक यह है कि पिछड़ा राज्य कहा जाने वाला ओडिशा 36 हजार करोड़ का निवेश अपने यहां ले जा चुका है और वह इस सूची में दूसरे नंबर पर है।

वर्षों से देश की राजनीतिक दिशा और दशा तय करते रहने वाला उत्तर प्रदेश छठे नंबर पर पहुंच गया है। जिस गुजरात मॉडल की चर्चा करते लोग नहीं थकते, वह महाराष्ट्र से पीछे है। वह भी तब जब सेमी कंडक्टर का मामला गुजरात के पीछे पड़ा हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा में इस बात पर तीखी बहस चल रही है कि भाजपा ने महाराष्ट्र का सेमी कंडक्टर उठाकर गुजरात की थाली में रख दिया, जबकि महाराष्ट्र की पिछली सरकार के कार्यकाल में ही इस कारखाने का महाराष्ट्र आना लगभग तय हो चुका था।

ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है कि इन हिंदी भाषी राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता के चलते ऐसा हो रहा होगा। बाकायदा स्थाई सरकारें हैं। मजबूत राजनीतिक माहौल है। फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है?

हैरत की बात तो यह भी है कि जो नीतीश कुमार इन दिनों प्रधानमंत्री पद की तैयारी करते यहां- वहां चक्कर काट रहे हैं, उनका बिहार मात्र चार सौ करोड़ के कमजोर निवेश के साथ इस सूची में सबसे पीछे है। गुजरात के हाल तो पूछो मत। वो पिछले साल के 88 हजार करोड़ के निवेश के सामने गिरकर 17 हजार करोड़ पर आ गया है। सालभर में ऐसा क्या हो गया कि वहां निवेश पांच गुना कम हो गया?

केजरीवाल ने तो वहां अभी-अभी जाना शुरू किया है, इसलिए उन पर भी इस गिरावट का आरोप सीधे- सीधे तो नहीं ही बनता। फिर उत्तर प्रदेश के बुल्डोजर बाबा क्या कर रहे हैं?