मंदी से आमदनी घटने व गरीबी बढ़ने का अंदेशा, ग्रोथ पर भी दिखने लगा असर !

क्या दुनिया डेढ़ दशक में तीसरी बार मंदी की ओर बढ़ रही है?

क्या दुनिया डेढ़ दशक में तीसरी बार मंदी की ओर बढ़ रही है? आज के इंग्लैंड का हाल इस सवाल का जवाब है। डेनमार्क के इन्वेस्टमेंट बैंक, सैक्सो बैंक के विश्लेषक क्रिस्टोफर डेम्बिक ने अगस्त के दूसरे हफ्ते में कहा था कि इंग्लैंड की हालत काफी हद तक विकासशील देश जैसी हो गई है। डेम्बिक के अनुसार, “सिर्फ एक पैमाना बचा है जो इंग्लैंड को विकासशील देशों में शुमार करने से रोकता है, और वह है उसकी करेंसी पौंड। डांवाडोल आर्थिक हालत के बावजूद पौंड मजबूत बना हुआ है।” लेकिन पिछले सोमवार को वह पैमाना भी टूट गया और डॉलर की तुलना में पौंड रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया। डेम्बिक का कोई नया बयान तो नहीं आया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय निवेशक कभी सुरक्षित समझे जाने वाले ब्रिटिश पौंड को बेचकर अमेरिकी डॉलर खरीद रहे हैं।

जिस ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होता था, उसकी मौजूदा हकीकत यही है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने कहा है कि दिसंबर तिमाही में देश मंदी में प्रवेश कर जाएगा। उसने 2025 तक निगेटिव ग्रोथ रेट यानी मंदी का अंदेशा जताया है। सिर्फ इंग्लैंड नहीं, यूरोप के अनेक देशों की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल होती जा रही है। पहले कोरोना संकट, फिर रूस-यूक्रेन युद्ध और अब इन दोनों के कारण रिकॉर्डतोड़ महंगाई ने दुनिया को एक बार फिर मंदी के मुहाने पर ला दिया है।

कोरोना लॉकडाउन और अब युद्ध से उपजा आर्थिक संकट…

2008-09 के वित्तीय संकट के बाद कहा गया था कि जीवन में ऐसा संकट एक बार ही आता है। लेकिन उसके बाद कोरोना लॉकडाउन और अब युद्ध से उपजा आर्थिक संकट… ऐसा पहली बार हुआ है। इसलिए वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने बुधवार को जारी ‘चीफ इकोनॉमिस्ट्स आउटलुक’ की शुरुआत इन पंक्तियों से की, “नई पीढ़ी पहली बार इतनी अधिक महंगाई देख रही है। इस पर नियंत्रण के लिए अमेरिका समेत अनेक देश ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, जिससे ग्लोबल ग्रोथ के लिए खतरा पैदा हो गया है। लोगों की वास्तविक आमदनी और कंज्यूमर कॉन्फिडेंस लगातार घट रहा है। ऐसे में बेरोजगारी और सामाजिक अशांति बढ़ सकती है।”