पंकज उधास ना पीते थे ना पिलाते थे, गाते थे तो श्रोता नशे में झूम जाते थे?

राय तपन भारती, वरिष्ठ पत्रकार

महज कुछ ही दिनों पहले की तो बात है, जब देश-दुनिया में अमर गायक तलत महमूद की जन्म शताब्दी की चर्चा आम थी, तो सुरों की मिठास संगीत प्रेमियों के दिलों में एक ऐसा नॉस्टेल्जिया का नशा उंड़ेल रही थी, जो शायद शराब में भी न पाया जाता हो. पुरानी यादें पुरानी शराब से भी ज्यादा नशीली होती हैं. आपने वो पंक्ति तो सुनी है कि नशा शराब में होता तो नाचती बोतल… तलत महमूद हों या कि पंकज उधास जैसे गायक, इनकी गजलों को सुनने के बाद ऐसा ही अहसास होता है. संगीत प्रेमी उनकी गजलें सुनते सुनते आज भी मदहोश हो जाते हैं।

अस्सी का दशक था, हिंदी फिल्मों में बप्पी लाहिड़ी के डिस्को संगीत पर युवा पीढ़ी थिरक रही थी, लेकिन उसी दौरान एक वर्ग ऐसा भी था जो दिल से झूमना चाहता था, वैसे श्रोताओं को उस दौर में प्राइवेट अलबमों के जरिए जिन गायकों ने दीवाना बनाया उनमें गुलाम अली, तलत अजीज, जगजीत सिंह, चंदन दास, अनूप जलोटा और पंकज उधास थे. गुलाम अली की सबसे लोकप्रिय गजल चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है… का अपना बोलवाला था, अनूप जलोटा ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन… गाकर अपनी लंबी तान से लोगों पर जादुई असर कर रहे थे. तकरीबन उसी वक्त पंकज उधास ने अपनी ऐसी गजलें पेश की थीं जिसे सुनकर पूरी कि पूरी युवा पीढ़ी मदमस्त हो उठी।

सन् 1980 में आहट से ही उनकी गायकी का सफर शुरू हो गया था, लेकिन तरन्नुम और महफिल के बाद जब उनकी नई पेशकश आफरीन आई तो उनकी नशीली आवाज के कद्रदान हिंदुस्तान के कोने-कोने तक फैल गए. आफरीन की गजलों का जादू सा असर था. उनकी ज्यादातर गजलें शराब, सुरा, नशा, मदहोशी, आलम, गम, जिंदगी, मयकदा जैसे शब्दों से लबरेज थीं, जो कि श्रोताओं को सराबोर किए रहती थीं।

मशहूर गजल गायक पंकज उधास का आज यानी 26 फरवरी को निधन हो गया है। सिंगर ने 73 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है। उनके निधन की जानकारी उनकी बेटी नायाब ने सोशल मीडिया पर दी है। वो लंबे समय से बीमार थे। वो उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे। 10 दिन पहले अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को किया जाएगा।