परमवीर मेजर धन सिंह थापा की पुण्यतिथि पर नमन
- By rakesh --
- 05 Sep 2022 --
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जनरल वी के सिंह, के कलम से !
1962 में भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव बढ़ता जा रहा था। चुशूल विमान अड्डे की रक्षा भारत के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण थी। इसके लिए उत्तर पैंगोंग में सिरिजैप चौकी पर मेजर धन सिंह थापा के नेतृत्व में 28 जवान तैनात किये गए। मगर चीनी सेना ने उसके प्रत्युत्तर में तीन चौकियाँ बना लीं और लगातार सैनिकों और अस्त्र शस्त्र बढ़ाती रही। धन सिंह थापा ने सैनिकों को किसी भी सम्भावना के लिए तैयार रहने के लिए कहा।
20 अक्टूबर 1962 को उनका अनुमान सही निकला जब चीन ने अत्यधिक तीव्रता से उस चौकी पर हमला बोल दिया। पहले तोपों के मुँह चौकी की तरफ मोड़ कर गोलाबारी की जिसका फायदा उठा कर करीब 600 चीनी सैनिक उस चौकी की तरफ आगे बढ़ते रहे। जब गोलाबारी बंद हुई तब तक वह चौकी काफी क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। कई भारतीय जवान घायल अथवा शहीद हो चुके थे। चौकी पर हुई गोलाबारी में संपर्क उपकरण भी नष्ट हो चुके थे जिससे कमान से संपर्क साधना भी असंभव था। धन सिंह थापा का अंतिम सन्देश जो कमान को मिला था वह था – “न पीछे हटूंगा, न समर्पण करूँगा।”
दुश्मन को अपनी तरफ बढ़ते देख धन सिंह थापा ने भारतीय सैनिकों को ललकारा और कहा कि कायरों की तरह जीने से अच्छा है कि वीरों की तरह मौत को गले लगाया जाये। इस युद्घ उद्घोष से सैनिकों में वीरता फूटी और उन्होंने शत्रु के हमले का जवाब देना शुरू किया। कई चीनी सैनिक मारे गए, जिसके उपरान्त अधिक भीषणता से तोपों ने भारत की चौकी पर गोले बरसाने शुरू कर दिए। साथ ही दुश्मन चौकी के और निकट आता रहा। वहाँ से उन्होंने चौकी पर Incendiary Bombs से हमला कर दिया जिससे बचे हुए भारतीय सैनिक भी चौकी से बाहर निकल आयें। परन्तु भारतीय सैनिकों ने हथगोलों और छोटे हथियारों से अपना प्रतिरोध जारी रखा।
उधर चीनी सेना पूरी तैयारी कर के आयी थी। मशीन गन, बजूका से लैस चीनी सैनिकों का साथ देने Amphibious Crafts भी आ गए थे। पूरी अग्निक्षमता उस एक चौकी पर झोंक दी गयी थी। उधर धन सिंह थापा अपने बचे हुए साथियों का हौसला बढ़ाते हुए चीनी सैनिकों का काल बने हुए थे। एक छोटी सी भारतीय चौकी बवंडर में जल रहे दीपक की तरह चीनी सेना को चुनौती देती जा रही थी। हतप्रभ हो कर चीनी सेना ने टैंक ले कर अपने सैनिकों के साथ उस चौकी पर चढ़ाई कर दी। इस तीसरे आक्रमण के समय उस चौकी में सिर्फ तीन सैनिक ही जीवित बचे थे। दूर से दिखने पर लग रहा था जैसे चौकी में सिर्फ आग और धुआँ था। परन्तु जब धन सिंह थापा और उनके साथी जवानों के पास कोई हथियार नहीं बचा तब वे अपनी खुखरी ले कर चीनी सैनिकों पर टूट पड़े। कई सैनिकों को मार गिराने के बाद उन तीन सैनिकों पर काबू कर लिया गया और उन्हें बंदी बना लिया गया।
उधर अटकलों के अनुसार यह सोचा गया कि इतने भीषण संघर्ष और अपरिहार्य शत्रु सैनिकों की संख्या के आक्रमण के उपरांत भारतीय पक्ष में किसी के बचने की सम्भावना नहीं थी। मेजर धन सिंह थापा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। परन्तु चीनी बंदी शिविर में संघर्षपूर्ण समय बिताने के बाद धन सिंह थापा वापस लौटे जहाँ उनका भव्य स्वागत तो हुआ ही साथ ही उनके पदक के विवरण में संशोधन भी किया गया।
इस परमवीर की पुण्यतिथि पर मेरा सलाम।
जय हिन्द !!!
जनरल वी के सिंह
केंद्रीय राज्यमंत्री