अमूल मैन वर्गीज कुरियन ने टिस्को की नौकरी से शुरू किया था प्रोफेशनल करियर
- By rakesh --
- 26 Nov 2020 --
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नवीन शर्मा
बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि अमूल मैन वर्गीज कुरियन (Verghese Kurien) ने झारखंड के जमशेदपुर स्थित टिस्को की नौकरी से अपना प्रोफेशनल करियर शुरू किया था।’टिस्को’ में कुछ समय काम करने के बाद कुरियन को डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति दी गई। वे बेंगलुरु के ‘इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हजबेंड्री एंड डेयरिंग’ में विशेष प्रशिक्षण लेने गये।
इसके बाद कुरियन अमेरिका गए, जहां उन्होंने ‘मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी’ से 1948 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था। भारत लौटने पर कुरियन को अपने बांड की अवधि की सेवा पूरी करने के लिए गुजरात के आणंद स्थित सरकारी क्रीमरी में काम करने का मौका मिला। 1949 के अंत तक कुरियन को क्रीमरी से कार्यमुक्त करने का आदेश दे दिया गया।
वर्गीज़ कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को मद्रास (चेन्नई) में हुआ था। भारत को दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बनाने के लिए श्वेत क्रांति लाने वाले वर्गीज़ कुरियन को देश में सहकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की आधारशिला रखने का श्रेय जाता है।
श्वेत क्रांति के जनक
वर्गीज़ कुरियन ने 1949 में ‘खेड़ा ज़िला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड’ के अध्यक्ष त्रिभुवन दास पटेल के अनुरोध पर डेयरी का काम संभाला। सरदार वल्लभभाई पटेल की पहल पर इस डेयरी की स्थापना गुजरात के खेड़ा जिले में की गयी थी।
60 लाख किसानों की 60 हज़ार कोऑपरेटिव सोसायटियाँ बनाईं
वर्गीज़ कुरियन ने 60 लाख किसानों की 60 हज़ार कोऑपरेटिव सोसायटियाँ बनाईं। ये प्रतिदिन तीन लाख टन दूध सप्लाई करती हैं। इसी को श्वेत क्रान्ति और ‘ओपरेशन फ़्लड’ के नाम से भी पुकारा जाता है। इस महान् कार्य से जहाँ किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, वहीं पर आम लोगों को दूध की उपलब्धि में भी सुविधा हुई। इन कार्यों के कारण इन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। डॉ. कुरियन ने 1973 में ‘गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन’ की स्थापना की और 34 साल तक इसके अध्यक्ष रहे।
अमूल की सफलता का सफर
भारत में कुरियन और उनकी टीम ने भैंस के दूध से मिल्क पाउडर और कंडेस्ड मिल्क बनाने की तकनीक विकसित की। इस तकनीक को अमूल की कामयाबी की प्रमुख वजहों में शुमार किया जाता है।
नेस्ले को दी कड़ी टक्कर
कंपनी ने इसके बलबूते ‘नेस्ले’ जैसी शीर्ष कंपनी को कड़ी टक्कर दी, जो मिल्क पाउडर और कंडेस्ड मिल्क बनाने के लिए सिर्फ गाय के दूध का प्रयोग करती थी। यूरोप में गाय के दूध के विपरीत भारत में भैंस का दूध अधिक उपयोग होता है। अमूल ने वर्ष 2011 में दो अरब डॉलर का कुल कारोबार किया। जबकि उसने अपने 50 साल के इतिहास में कभी किसी सेलेब्रिटी को प्रचार में इस्तेमाल नहीं किया।
अमूल के विज्ञापन भी हैं दमदार
इसके बावजूद अमूल के विज्ञापन काफी मशहूर रहे हैं। अमूल दूध पीता है इंडिया तो इसका खूब पसंद किया जानेवाला एड है। इसके अलावा अमूल गर्ल के साथ अखबारों और पत्रिकाओं में जो विज्ञापन प्रकाशित होते हैं वे ज्वलंत मुद्दों और तात्कालिक घटनाओं से जुड़े होते हैं बहुत कम शब्दों में वे अपनी बात इस अंदाज में कहते हैं कि आपके चेहरे में हल्की मुस्कान आ जाये और आप वाह कहने को मजबूर हो जायें। इस विज्ञापन का श्रेय अमूल के एडवर्टाइजिंग डायरेक्टर सिल्वेसटर डिकुन्हा को जाता है। वहीं प्यारी सी अमूल गर्ल आर्ट डॉयरेक्टर यूस्टेट पॉल फर्नांडिस की कल्पना का कमाल है।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष बने
अमूल की सफलता से अभिभूत होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड’ (एनडीडीबी) का गठन किया। जिससे पूरे देश में अमूल मॉडल को समझा और अपनाया गया। कुरियन को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। एनडीडीबी ने 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की शुरूआत की जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया। कुरियन ने 1965 से 1998 तक 33 साल एनडीडीबी के अध्यक्ष के तौर पर सेवाएं दीं। वे ‘विकसित भारत फाउंडेशन’ के प्रमुख रहे। उन्होंने असंगठित ग्रामीण भारत के दुग्ध उत्पादकों को जहां आर्थिक मजबूती दिला कर सम्मान दिलाया वहीं पूरे विश्व को एक दिशा दिखाई।60 के दशक में भारत में दूध की खपत जहाँ दो करोड़ टन थी वहीं 2011 में यह 12.2 करोड़ टन पहुंच गयी।
इंडिया को दूध पिलाने वाले खुद दूध नहीं पीते थे
कुरियन के निजी जीवन से जुड़ी एक रोचक और दिलचस्प बात यह है कि देश में ‘श्वेत क्रांति’ लाने वाला और ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर यह शख़्स खुद दूध नहीं पीता था।
मंथन फिल्म में दिखाई गयी अमूल की सफलता की कहानी
वर्गीज़ कुरियन और फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने मिलकर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फ़िल्म ‘मंथन’ की कहानी भी लिखी, यह फिल्म क़रीब 5 लाख किसानों की वित्तीय सहायता से बनायी गयी थी।
पूंजीवादी विकास का एक वैकल्पिक मॉडल पेश किया
देश में ‘श्वेत क्रांति के जनक’ और ‘मिल्कमैन’ के नाम से मशहूर वर्गीज़ कुरियन की अथक मेहनत का ही नतीजा था कि दूध की कमी वाला यह देश दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देशों में शुमार हुआ। ‘श्वेत क्रांति’ और दूध के क्षेत्र में सहकारी मॉडल के ज़रिये लाखों ग़रीब किसानों की ज़िंदगी संवारने वाली शख्सियत डॉ. वर्गीज़ कुरियन ने मल्टीनेशनल कंपनियों और पूंजीवादी विकास का एक वैकल्पिक मॉडल पेश किया था। इनके मॉडल में समाज के गरीब और आम किसानों को विकास का भागीदार बनाया गया।
9 सितम्बर, 2012 नाडियाड, गुजरात में इनका निधन हुआ।
पुरस्कार-उपाधि ‘पद्म श्री’, ‘पद्म भूषण’, ‘पद्म विभूषण’, ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’।