जीबी सिंड्रोम के नौ नए मामले से सनसनी, सरकार ने उठाए ठोस कदम !

 

सबरंग डेस्क

देशभर में एक बार फिर से बड़ी बीमारी ने सभी को सकते में डाल दिया है। दरअसल महाराष्ट्र से सोलापुर में जीबी सिंड्रोम (गुललेन-बैरे सिंड्रोम) के नौ नए केस सामने आए हैं। इस बीमारी में चपेट में अब तक 110 मरीजों के आने की सूचना है। इनमें से 17 को वेंडिलेटर की सपोर्ट पर रखा गया है। इसके पूर्व 26 जनवरी को सोलापुर में ही एक 40 साल के व्यक्ति की मौत इस बीमारी से हो गई थी।

सोलापुर सरकारी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजीव ठाकुर के मुताबिक मरीज को सांस फूलने, निचले अंगों में कमजोरी और दस्त जैसे लक्षण थे। उसे 18 जनवरी से लगातार वेंटिलेटर सपोर्ट पर था। डीन ने बताया कि मौत के कारणों का पता लगाने के लिए क्लिनिकल पोस्टमार्टम किया गया। जिसमें वजह GB सिंड्रोम बताई गई। जांच के लिए ब्लड सैंपल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) भेजा गया है। शहर के अलग-अलग हिस्सों से 34 वाटर सैंपल भी कैमिकल और बायोलॉजिक एनालिसिस के लिए पब्लिक हेल्थ लैब भेजे गए। इनमें से सात सैंपल में पानी के दूषित होने की सूचना मिली है।

 

गौरतलब है कि पुणे में नौ जनवरी को अस्पताल में भर्ती मरीज GBS पॉजिटिव आया था, यह पहला केस था। 19 दिन में एक्टिव केस बढ़ गए हैं। राज्य सरकार ने दो काम किए जीबी सिंड्रोम- छह जरूरी सवाल और उनके जवाब स्वास्थ्य विभाग ने 35 हजार से ज्यादा घरों की जांच की सोलापुर में स्वास्थ्य विभाग की टीमें मरीजों की जांच के लिए सर्वे कर रही हैं।

दरअसल कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया, जो आमतौर पर पेट में संक्रमण का कारण बनता है। इस बैक्टीरिया से दूषित पानी पीने से नर्व डिसऑर्डर का खतरा बढ़ सकता है। महाराष्ट्र सरकार की मदद करने केंद्र ने भेजी टीम GBS के बढ़ते मामलों को लेकर केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार की मदद के लिए हाई लेवल स्पेशलिस्ट टीम भेजी है। हालांकि राज्य सरकार ने भी GB सिंड्रोम से बचने के लिए लोगों को सलाह दी है कि वे उबला हुआ पानी पिएं। ठंडा खाना खाने से बचें।

 

महंगा है इसका इलाज

 

एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार GBS का इलाज भी महंगा है। डॉक्टरों के मुताबिक मरीजों को आमतौर पर इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन लगवाना पड़ता है। निजी अस्पताल में एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपए है। पुणे के अस्पताल में भर्ती 68 साल के मरीज के परिजन ने बताया कि इलाज के दौरान पेशेंट को 13 इंजेक्शन लगाने पड़े थे। डॉक्टरों ने मुताबिक GBS की चपेट में आए 80% मरीज अस्पताल से छुट्टी के बाद 6 महीने में बिना किसी सपोर्ट के चलने-फिरने लगते हैं। लेकिन कई मामलों में मरीज को एक साल या उससे ज्यादा समय भी लग जाता है।